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जन-सामान्य को समझने-जानने के लिए अंक-विद्या अर्थात् अंकों का गणित या से बढ़कर फल कथन के लिए अन्य कोई गणित या विज्ञान नहीं। यह जहां सहज-सुगम-सुबोध है वहीं जटिलता के दोष से मुक्त है। अंक स्वयं परम सत्य है। अंकशास्त्र अंकों का विज्ञान है जिसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति का भविष्यकथन एवं विश्लेषण उसकी जन्मतिथि तथा नाम में मौजद अक्षरों के आंकिक मान के आधार पर किया जाता है। भूत, वर्तमान एवं भविष्य बताने की अनेक पद्धतियां सृष्टि के आरंभ के उपरांत प्रचलित हुई हैं। इन विविध पद्धतियों में से अंक ज्योतिष भी एक अति महत्वपूर्ण पद्धति है जो प्राचीन काल से ही विश्व के विभिन्न क्षेत्रों मे थोड़ी विविधता के साथ प्रचलित है। भारत में भी इसका प्रचलन वैदिक काल से प्रारंभ हुआ और तभी से हमारे ऋषि-महर्षियों ने इस विद्या का सदुपयोग काफी प्रभावी एवं सटीक तरीके से अंकों का संकेत लेकर लोगों का मार्गदर्शन करने तथा उनके जीवन को सुधारने के उद्देश्य से किया है। संसार के मूल में पांच तत्त्वों की प्रधानता है- जल , वायु  पृथ्वी अग्नि आकाश, जो कुछ है या था अथवा होगा, उसके मूल में यही 5 तत्त्व हैं। अंक सर्वोपरि और अंक प्रधान। सूर्योपासनार्थ 7 हजार जप का विधान है तो चंद्र हेतु 1 हजार, मंगल वास्ते 10 हजार, बुध के लिए 9 हजार , गुरु बृहस्पति के लिए 19 हजार, , शुक्र के लिए 16 व शनि के लिए 23 हजार , राहु-केतु के लिए क्रमशः 18 व 17 हजार जप का विधान महर्षियों ने निर्धारित किया है। मानें या न मानें पर इन जप-विधान के मूल में भी अंक ही प्रमुख हैं। गायत्री के 24 अक्षर हो, तो नवार्ण मंत्र में 1 अक्षर कुछ मंत्र 11, 24, 32, या 36, 48 अक्षर के हैं। आप कोई मंत्र विशेष, यंत्र या तंत्र सिद्ध करना चाहते हैं तो इसके लिए अलग-अलग गिनके मणियों की माला चाहिए। सर्वा्थ सिद्धि करना चाहते हैं तो 27 मणियों की माला लें, मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा है तो  25 मणियों की माला, लक्ष्मी प्राप्ति की ईच्छा है तो 30 मणियों की माला,प्रेयसी प्राप्ति हेतु 54 तथा सर्व कार्य सिद्धि वास्ते 108 मणियों की माला प्रयुक्त करने का विधान है। ग्रह नौ- सूर्य ,चंद्र, मंगल, बुद्ध , बृहस्पति , शुक्र, शनि  राहु और , केतु है। उनमें भी 7 प्रमुख व 2 राहु-केतु छाया ग्रह हैं। नौ ग्रह के अंक क्रमश 1,2,3,4,5,6,7,8,9 है।काल गणना में भी हमारे ऋषियों ने अंका का सहारा लिया। सूर्य जीवनाधार है अतः उसे प्रधान पद दिया व शासक माना। मन-मस्तिष्क पर चंद्रमा का नियन्त्रण अक्षुण्ण है। मंगल जहां युद्ध का देवता है वहीं बुध तर्क का, गुरु शिक्षा-संतान रक्षक तो शुक्र भोग प्रिय व शनि को यम माना। सूर्य 1 महीने में अपना एक वृत्त पूरा व कर लेता है। संपूर्ण खगोल वृत्त 360° पर आधारभूत है और उसकी कलाएं 360x60=21600 स्पष्ट होती हैं। सूर्य 6 माह तक उत्तरायन व 6 माह दक्षिणायन रहता है। इस प्रकार एक वर्ष में 2 अयन और एक अयन मान 21600÷2=10800 ही तो सिद्ध होता है। ज्योतिष में शून्य (जीरो) का मान त्याज्य है तो 10800 से 108 शुद्ध संख्या बची रहती है। इसी कारण महर्षि ने सर्व-सिद्धि हेतु 108 मणियों की माला को प्रमुखता दी है। अंकों का एक निश्चित स्वरूप है, सुनिश्चित गति है, स्पष्ट अर्थ है निश्चित लक्षण है, एक योजना व क्रम है। उसे भली प्रकार समझ लें तो मानव-जीवन को समझना सरल से सरलतम हो जाता है।